शतदल उर के खिल गए, दिनकर मदन अनूप।
पग-पग अब छाया दिखे, कितनी भी हो धूप।
कितनी भी हो धूप, कदम अब हँस कर बढ़ते।
दूजे लकदक रंग, नहीं अब मन पर चढ़ते।
जीतूं अब संसार, लगे है इतना भुजबल।
दिनकर का है साथ, खिले रहते हैं शतदल।
शतदल उर के खिल गए, दिनकर मदन अनूप।
पग-पग अब छाया दिखे, कितनी भी हो धूप।
कितनी भी हो धूप, कदम अब हँस कर बढ़ते।
दूजे लकदक रंग, नहीं अब मन पर चढ़ते।
जीतूं अब संसार, लगे है इतना भुजबल।
दिनकर का है साथ, खिले रहते हैं शतदल।