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शत-शत कंठ विषपाई / चंद्र रेखा ढडवाल

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रोज़-रोज़
संगेलती है कचरा
बाहर
रोज़-रोज़
समेटती है कचरा
भीतर
एक नहीं
शत-शत कंठ विषपाई
नारी सदा-सदा से.