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शदीद-तर तलबे जाम हो गई है मियाँ / सुरेश चन्द्र शौक़

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शदीद-तर तलबे जाम हो गई है मियाँ

हो बंदोबस्त कि अब शाम हो गई है मियाँ


किसी—किसी को सलीक़ा नहीं है पीने का

शराब तो यूँ ही बदनाम हो गई है मियाँ


बदलते चेहरों का किस—किस से अब गिला कीजे

ये मसलहत की रविश आम हो गई है मियाँ


पलट के फिर नहीं आई किसी के ऐवाँ से

निगाह जुज़्वे-दरो-बाम हो गई है मियाँ


फिर आज शाम तिरा नाम ले के पी हमने

फिर आज शाम तिरे नाम हो गई है मियाँ


चिराग़-ए-सुब्ह की मानिंद टिमटिमाते हैं

हमारी ज़ीस्त की अब शाम हो गई है मियाँ.


शदीद —तर=तीव्र; बंदोबस्त=प्रबंध;ऐवाँ=महल;जुज़्वे—दरो बाम=द्वार/अट्टालिका का अंश; ज़ीस्त=ज़िंदगी