भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शपथ तुम्हारी कनखी की / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सजनी, मानो
रास हुई कल देह हमारी
शपथ तुम्हारी कनखी की

बरसों पहले तुमने सिरजा था जो सूरज
वही बना था मीठी इच्छाओं का अचरज

अंग-अंग में
उड़न जगी थी
पंछी सूरजपंखी की

  
एक नया इतिहास हुआ था साँसों का
गूँज उठा था झुरमुट, सजनी, बाँसों का

लगी हमें थी
वंशीधुन-सी
अदा कुँवारी अनखी की