शब्दचित्र / विश्राम राठोड़
मधूर मिलन हो यूं शब्दों में, मैं भी यूं हर्षाता हूँ
मिश्री माखन तुलसी चन्दन जितना मैं भोग लगाता हूँ
कल कल करती नदियों के संग
अपना गीत में गुनगुनाता हूँ
मैं भारत की माटी का कण ,शब्दों के संग जग जाता हूँ
शब्दों के संग पहरे सपनें, सपनों में ही खो जाता हूँ
वीणा वादन सूर ही साधन यही प्रीत में लगता हूँ
रसखानों के भजनों के संग रहीम कबीर को दोहराता हूँ
आजादी के बिगुल बजे तब, यह गीत आज में गुनगुनाता हूँ
मैं भारत की माटी का कण शब्दों के संग जग जाता हूँ
पाषाणों में पत्थर पल था, लौह युग में जग जाता हूँ
मैं मानव अभिभूतो का जग में वन्दन गाता हूँ
शब्दों के संग कलरव करती नदियाँ पंछी, भौंर में सुनाता हूँ
शब्दों के संग हुई क्रांति, शब्दों में हर पल देख पाता हूँ
मैं भारत की माटी का कण शब्दों के संग जग जाता हूँ
शब्द स्थिर है शब्द पवित्र है शब्दों का सार सुनाता हूँ
जन गण मन से वन्दे मातरम् तक यही गीत में गुनगुनाता हूँ
मानव जग से मानव पथ से बिना शब्दों के कहाँ रह पाता हूँ
शब्दों के संग क्रांति हुई तो क्रांति ओज में गाता हूँ
चन्द्रयान से मंगलयान मंगल गीत में रोज़ लिख जाता हूँ
मैं भारत की माटी का कण शब्दों के संग जग जाता हूँ
शब्दों के संग चलना सीखा, शब्दों का तेज सुनाता हूँ
शब्दों के संग तुतलाना सीखा, शब्दों में ही भेद बताता हूँ
शब्द कबीर, शब्द अमीर है,
शब्दों में ग़ालिब गाता हूँ
शब्दों जैसे बनें कव्वाली, शब्दों में नवदीप जलाता हूँ
शब्दों जैसे झूम उठे हम, शब्दों में खो जाता हूँ
अक्षरों जैसा हो भाई चारा, शब्दों में घुल मिल जाता हूँ
अक्षरों जैसा प्रेम प्रतीत हो, तब मैं शब्दों को गा पाता हूँ
शब्दों जैसी हुई ईद- दिवाली, सात रंगों में रंग जाता हूँ
मिलन झूलन हो शब्दों जैसा, तभी मैं नया गीत सुना पाता हूँ
मैं भारत की माटी का कण शब्दों के संग जग जाता हूँ