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शब्दहीन भावों की पाती / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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शब्दहीन भावों की पाती
बोलो कैसे पढ़ पाओगे ?

अलंकार होती रमणी का
झंकारों में कुछ कह देती।
होती कवि की मुखर लेखनी
छंद सुझावों के रच लेती।

मौन मूक मेरे दृग - पंछी
कैसे भाव पकड़ पाओगे ?
शब्दहीन भावों की पाती
बोलो कैसे पढ़ पाओगे ?

उपवन की कलिका होती तो
बन वसंत ऋतु मुसका देती।
अलि - प्रियतम के आने पर
पत्तों का घूँघट खिसका देती।

क्षुद्र शूल बाहों के बंधन
कैसे इन्हें जकड़ पाओगे ?
शब्दहीन भावों की पाती
बोलो कैसे पढ़ पाओगे ?

विकल ह्रदय की आतुरता
होती तो भी कुछ समझा देती।
अमर वेदना होती नयनों
से कुछ आँसू ढलका देती।

प्रस्तर खंड शुल्क यह बोलो
कैसे प्रतिमा गढ़ पाओगे ?
शब्दहीन भावों की पाती
बोलो कैसे पढ़ पाओगे ?