शब्दातीत / मोना गुलाटी
धरती और आकाश के बीच, कहीं आस-पास
फूटते हैं कई उदास, अकेले
सोच में डूबे, सूखे चेहरे : अन्दर से
कोई हाथ निकलता है और पसलियों के ऊपर से गुज़र जाता है
और सौंधी महक हवा में गमक जाती है ।
आभ्यंतर से फूटता हाथ, पसलियों
चेहरों और हड्डियों
पर सरकता
भरता हाथ : सूखे चेहरों और हड्डियों
पर सरकता
भरता हाथ; सूखे चेहरों के रोम-रोम को सहलाता
हाथ; एक अदृश्य संज्ञा है ! हाथ जो किसी को
दिखाई नहीं देता और
पीछे से आकर आँखें बन्द कर देता है; अकस्मात ही
लापरवाह बचपन आँखों में चमकने लगता है और
पेड़ की ऊँची, हरी फुनगी को ढूँढ़ने के लिए
पूरा बदन लचकने लगता है ! मुझे
इधर-उधर छितरे तमाम सूखे
उदास चेहरे आभ्यंतर तक चुभ जाते हैं ।
कसैला स्वाद मेरी जीभ पर रेंगने लगता है
और कोई
ढूँढ़ने लगता है
पसलियों, कोशिकाओं में
सरकता अदृश्य
हाथ;
अदम्य विश्वास पाने के लिए ।
हाथ
अकस्मात् ही झुक आता है
और भूमिकाएँ, परिवेश, नाटक ...
सभी कुछ संज्ञातीत हो जाते हैं
मात्र अपने को आँखों में भरकर देखता
व्यक्ति रह जाता है चकाचौंध
निपट अकेला, निमग्न, आप्लावित और चूमता हुआ
हाथ : शब्दातीत !
निरर्थक सम्वादों में विर्कीण व्यक्तित्व पूँजीभूत लौट आता है हथेलियों
में झुके चेहरे-सा और
अंग-प्रत्यंग उन्मादित हो उठता है !