भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्दों का ताजमहल / विमल कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं शाहजहाँ नहीं हूँ
नहीं है मेरे पास
इतनी धन-दौलत
हूँ एक क्लर्क मामूली-सा

सौभाग्य से हैं मेरे पास
कुछ शब्द
और मैं करता हूँ
कुछ काग़ज़ भी काला
मैं शब्दों का एक ताजमहल
बनाना चाहता हूँ
तुम्हारे लिए

मुझे डर है और इसलिए माफ़ करना मुझे
कहीं मैं अपनी ज़ि“न्दगी में अगर
तुम्हारे लिए
शब्दो की एक टूटी हुई
मस्जिद भी नहीं बना पाया तो तुम कितना हँसोगी
मेरे प्रेम पर

क्या तुम घर के
-- रूम में
रखोगी मेरे इस ताजमहल को
या
टूटी हुई मस्जिद को
जिसको लेकर काफ़ी मुक़दमा भी चला
चुल्लू में
और ख़ून-ख़राबे भी हुए ।