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शब्दों के मध्य का प्रसार / कुमार विमलेन्दु सिंह

शब्दों के मध्य का प्रसार
मिल जाए अगर
कभी स्थल स्वरूप
आलय वही बनाऊँगा
पूर्ण हुए श्रवण से
अपेक्षित कथन के बीच
एक नई भूमि बिछाऊँगा
एक गवाह होगा
निकल जाने का
चिंता के लिए
एक वातायन से
तृप्ति को बुलाऊँगा

तुम, मैं और अर्थपूर्ण शान्ति
वही रहेंगे
समय से परे
मिल जाए अगर कभी
स्थल स्वरूप
शब्दों के मध्य का प्रसार