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शब्दों के हाथी पर ऊँघता महावत है / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
शब्दों के हाथी पर ऊँघता महावत है ।
गाँव मेरा लाठी और भैंस की कहावत है ।
शीत घाम का वैभव
रातों का अन्धकार,
पकते गुड़ की सुगन्ध
धूल- धुएँ का गुबार,
पेट-पीठ के रिश्ते ढो रहा यथावत है,
गाँव मेरा लाठी और भैंस की कहावत है ।
धूप मछुआरिन के
जाल फँसी रोहू-सी,
इसकी हर हैसियत
ग़रीब की पतोहू की,
दो रोटी-धोती को आपसी अदावत है,
गाँव मेरा लाठी और भैंस की कहावत है ।
घोड़ों के लिए उगी
घास है, बगीचा है,
कुर्सी के पाँव तले
गुदगुदा गलीचा है,
हर पँचवें साल प्रजातन्त्र की सजावट है,
गाँव मेरा लाठी और भैंस की कहावत है ।