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शब्दों ने जो बात कही है / नचिकेता
Kavita Kosh से
शब्दों ने
जो बात कही है
सच है
झूठ-प्रपंच नहीं है
चटख धूप से
निविड़ छाँह तक
ध्वज-सी फहरी हुई
चाह तक
पसरी खामोशी
भुतही है
खुरच
समय को
नाखूनों से
पूछे कौन
प्रश्न ब्रूनो से
तुमने कितनी व्यथा
सही है
हमें चाहिए
हलचल ऐसी
धधके जो
दावानल जैसी
आँखें
उसे तलाश
रही हैं