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शब्दों से ही लड़ूंगा / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
मत मानों
मत स्वीकारो
चाहे जितनी बार मारो
नोच लो पर
फ़िर भी उड़ूंगा
नहीं मरूंगा
न ही डरूंगा
किसी भय
जय-पराजय से
नहीं मानूंगा हार....
खुले रखे हैं द्वार
हरेक की
हर सौगात के लिए
घात प्रतिघात के लिए
शब्दों से ही लड़ूंगा
शब्दों की जमात के लिए