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शब्दोॅ केॅ मानें / अशोक शुभदर्शी

Kavita Kosh से
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अक्सर हुनी चललोॅ जाय छै
शब्दोॅ पर

बहुतेॅ गड़बड़ होय जाय छै
जबेॅ हुनी चललोॅ जाय छै
खाली शब्दोॅ पर

सब गड़गड़ याँही सें शुरु होय छै
हुनी उलझतें रहतै
टकरैतें रहतै
शब्दोॅ के दीवारोॅ सें
आरोॅ होतें रहतै गड़बड़
हुनका साथें

हुनी पड़तें रहतै मुश्किलोॅ में
हुनी ढूढ़तें रहतै सवालोॅ केॅ भँवर में

एक दिन हुनका जाय लेॅ पड़तै
शब्दोॅ के भीतर
शब्दोॅ केॅ असली मानें तांय
समझै लेॅ पड़तै ओकरोॅ मकसद
गहराई सें

शब्द प्रायः छोटोॅ होय जाय छै
आपनोॅ अर्थ दै केॅ ।