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शब्द के हार से दी बिदाई तुम्हें / हरकीरत हीर
Kavita Kosh से
देख लो हमने दे दी रिहाई तुम्हें
अब देंगे कभी हम दिखाई तुम्हें
हो गये अज़नबी इक-दूजे से हम
प्रीत मेरी नहीं मीत भाई तुम्हे
तोड़ देना अजी दिल लगाकर कहीं
ये अदा मीत किसने सिखाई तुम्हें
है न कोई गिला और शिकवा कहीं
अश्क़ देंगे नहीं अब दिखाई तुम्हें
दूँ तड़पकर सदा जो कभी मीत मैं
ख़्वाब में भी नहीं दे सुनाई तुम्हें
यश फ़लक तक चले ख़ूब गुणगान हो
हर जगह में मिले रोशनाई तुम्हें
जा रही छोड़कर 'हीर' ख़त आख़िरी
शब्द के हार से दी बिदाई तुम्हें