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शब्द मेरे गूँजते हैं / रोहित रूसिया

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शब्द मेरे गूँजते हैं
गीत बन कर

फूलों में
पत्तों में
कलियों में
सावन में
भीनी रंगरलियों में
शब्द मेरे झूमते हैं
प्रीत बन कर

पर्वतों में
नदियों में
झरनों में
सुबह और
शामों की
किरणों में
शब्द मेरे घूमते हैं
मीत बन कर

सुख-दुःख में
हँसने में
रोने में
जीतने में
हारने में
खोने में
शब्द मेरे डोलते है
रीत बन कर

शब्द मेरे गूंजते हैं
गीत बन कर