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शब्द शोर / राहुल कुमार 'देवव्रत'
Kavita Kosh से
तूने कहे थे सिर्फ़ सुनने को
ये तुम जानो
सुना न सिर्फ़ सौ टके जिया मैंने
ये कान...
बरसों तलक पीते रहे एक-एक वाक्य शब्दशः
बिना जांचे
कहो क्या झूठ है?
बरस बीते तो ये जाना
शब्दों की बारिश में नहाया
मैं तुम्हारा व्यक्ति नहीं
कोई अनियत संख्या था
प्रथम और अंतिम के बीच
विष है
तरंगें जम गई हैं तार जैसी
ये शब्द नहीं
उन तारों के बीच फंसे कांटे हैं
न सिर्फ़ चुभते
बारूद-सा विस्फोट करते है
ये पिघलते चूते हैं
जैसे कान में कोई सिक्का ढ़ाला जा रहा हो
शब्दों में बड़ी ताकत होती है
तुम न समझोगे