भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द सपना नहीं देखते / नीरज दइया
Kavita Kosh से
शब्दों के नहीं
होती है आंख
कवि के !
जानते हैं आप
कवि देखता है
सपना
कविता में
कविता का ।