भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द / अर्सेनी तर्कोव्स्की
Kavita Kosh से
शब्द तो मात्र खोल होता है
पतली-सी फिल्म, खाली ध्वनि,
पर उसके भीतर अजीब रोशनी की तरह
गुलाबी रंग के धड़कते हैं कण।
धड़कती हैं नसें, दहाड़ते हैं शुक्राणु,
और एक तुम - एकदम निष्क्रिय तब भी
जब तुम्हारा खुशनसीब वह कुर्ता पहने
प्रकट होता है इस दुनिया में।
शताब्दियों की प्राप्त है शक्ति शब्दों को
और यदि तुम हुए एक कवि
दूसरा तुम्हारे पास हो न कोई विकल्प
इस बहुत बड़ी दुनिया में -
जरूरत नहीं समय से पहले
युद्ध या प्रेम का वर्णन करने की,
डरते रहना भविष्यवाणियों से
मृत्यु को पास बुलाना ठीक नहीं!
शब्द होता है मात्र एक खोल -
मानव-नियति की एक फिल्म,
चाकू तेज कर रही होती है तुम्हारे लिए
तुम्हारी ही कविताओं की हर पंक्ति।