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शब्द / बहादुर पटेल
Kavita Kosh से
हमारे पास शब्दों की कमी बहुत
यही वज़ह है कि
बचा नहीं सकते कुछ भी ऎसा
कि जैसे चिड़िया की चहचहाहट
सब कुछ होते हुए भी शब्दों का न होना
कुछ नहीं होने जैसा है
दीवार है हमारे पास
जिसे खड़ा करते हम अपने चारों ओर
जीवन के भीतर ऎसा कोई उजास नहीं
जिसके बल पर खड़ी की जा सकती हो कोई इमारत
न कोई ऎसा ठिकाना कि आसपास महसूस हो जीवन
ऎसी कोई आवाज़ भी नहीं
जिसकी धमक से खिंचा चला आए कोई
और सुनें हमें धरती पर जीवन रहने तक
शब्दों के बिना हम कैसे सुना सकते हैं जीवनराग
कैसे बताएँ कि तितली का
रंग और सुगन्ध से बहुत गाढ़ा रिश्ता है
जैसे शब्द का भाषा और संस्कृति से
बिना शब्दों के मनुष्यता से तो बाहर होते ही हैं
भाषा की दुनिया मे भी नहीं हो सकते दाख़िल।