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शब्द / बीना रानी गुप्ता

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हर क्षण की हो
शब्दों में अभिव्यक्ति
क्या यह सम्भव हो पाता
मन की अंधेरी गुफा में
क्या छिपा है ?
कब, कोई, कौन जान पाता
बैर, क्रोध, इर्ष्या कर
हम जीवन-रस पी न पाते।
शब्द जाल में उलझे रहते
मर्म समझ न पाते।
शब्द है ब्रह्मानंद
प्रभु से मिलन कराते
हमारी एकांत साधना में
शब्द ही बनते कभी कटु स्मृतियाँ
कभी मधुर
शब्दों को न समझो
तुम मात्र खिलौना
ये तुम्हें भी खिलौना
बनाने की ताकत हैं रखते।
शब्द है गागर में सागर
कभी कमान से निकला तीर
शब्द नश्तर भी चुभोते
घाव भी शब्द ही हैं भरते।

शब्दों से ही हुए युद्ध
विश्वयुद्ध
शब्दों में ही होते हैं समझौते
शब्दों की ताकत को तुम पहचानो
शब्दों से बनाओ स्नेह संसार
नहीं होगा अंत
निशब्द निस्पंद और एकांत।