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शब्द / विद्याभूषण
Kavita Kosh से
शब्द
ख़ाली हाथ नहीं लौटाते।
तुम कहो प्यार
और एक रेशमी स्पर्श
तुम्हें छूने लगेगा।
तुम कहो करुणा
और एक अदृश्य छतरी
तुम्हारे सन्तापों पर
छतनार वृक्ष बन तन जाएगी।
तुम कहो चन्द्रमा
और एक दूधपगी रोटी
तुम्हें परोसी मिलेगी,
तुम कहो सूरज
और एक भरा-पूरा कार्यदिवस
तुम्हें सुलभ होगा।
शब्द
किसी की फरियाद
अनसुनी नहीं करते।
गहरी से गहरी घाटियों में
आवाज़ दो,
तुम्हारे शब्द तुम्हारे पास
फिर लौट आएँगे,
लौट-लौट आएँगे।