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शब्द / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
(एनी सुलिवान और हेलेन कीलर के लिए)
चीज़ों को नाम दो
शब्द सृष्टि की कुंजी है
बोलना होठों की कसरत नहीं
लिखना उँगलियों का खेल नहीं
शब्द ’होने’ का सबूत है
वह एक विराट मौन को तोड़ता है
एक निबिड़ अंधकार से उबारता है
क्या ज़रिया है हमारे पास
उस दिक्काल से जूझने का
जिसके बीच हम फेंक दिए गए हैं ?