भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब-ए-ग़म ऐ मेरे अल्लाह बसर भी होगी / सीमाब अकबराबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 शब-ए-ग़म ऐ मेरे अल्लाह बसर भी होगी|
रात ही रात रहेगी के सहर भी होगी|
[सहर=शाम]

मैं ये सुनता हूँ के वो दुनिया की ख़बर रखते हैं,
जो ये सच है तो उंहें मेरी ख़बर भी होगी|
 
चैन मिलने से है उन के न जुदा रहने से,
आख़िर ऐ इश्क़ किसी तरह बसर भी होगी|