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शब की जब तक नहीं सहर होगी / ईश्वरदत्त अंजुम

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शब की जब तक नहीं सहर होगी
ये नज़र जुज़्वे-संगे-दर होगी

ले के जाये जो मुझको मंज़िल पर
ऐसी कोई तो रहगुज़र होगी

हादिसों से भरी है ये दुनिया
आज कुछ कल को कुछ खबर होगी

ऐ कनखियों से देखने वाले
ये अदा कितनी पुर-ख़तर होगी

दर्द बक्शा है उसकी यादों ने
आंसुओं में ही अब बसर होगी

जिसकी यादों में गुम है तू अंजुम
क्या उसे भी तेरी ख़बर होगी