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शब को वो पीए शराब निकला / मीर तक़ी 'मीर'
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शब् को वो पीए शराब निकला
जाना ये कि आफ़्ताब निकला
क़ुर्बाँ प्याला-ए-मै-नाब
जैसे कि तेरा हिजाब निकला
मस्ती में शराब की जो देखा
आलम ये तमाम ख़्वाब निकला
शैख़ आने को मै-क़दे में आया
पर हो के बहोत ख़राब निकला
था ग़ैरत-ए-बादा अक्स-ए-गुल से
जिस जू-ए-चमन से आब निकला