भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब को वो पीए शराब निकला / मीर तक़ी 'मीर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शब् को वो पीए शराब निकला
जाना ये कि आफ़्ताब निकला

क़ुर्बाँ प्याला-ए-मै-नाब
जैसे कि तेरा हिजाब निकला

मस्ती में शराब की जो देखा
आलम ये तमाम ख़्वाब निकला

शैख़ आने को मै-क़दे में आया
पर हो के बहोत ख़राब निकला

था ग़ैरत-ए-बादा अक्स-ए-गुल से
जिस जू-ए-चमन से आब निकला