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शरणार्थी / पूनम मनु
Kavita Kosh से
सोलह बरस बिताए मैंने
पिता के घर में
सभी की रजामंदी से
शरणार्थी थी वहाँ मैं
अब पति की शरण में
पिछले कई बरसों से
उनकी रजामंदी से
आगे किसकी... पता नहीं
एक कसक के साथ
मैं पूछती हूँ तुमसे आज
ओ दुनिया के पीर-फकीरो
नीति-नियंताओ, स्त्री भाग के
ज्ञानी-ध्यानी, साधू-संतो
नहीं रह सकती मैं सदा मुहाजिर
दो! पता अब मेरे घर का,
माँ के गर्भ के बाद कहाँ है...?
मेरा अपना ठौर-ठिकाना।