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शरद-शिशिर-हेमंत / अंगिका दोहा शतक / राहुल शिवाय

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कातिक के पूनम करै, कोहोॅ सेॅ असनान ।
देख चकोरोॅ ठो करै, रही-रही केॅ गान ।1।

चम्पा-बेली फूल सेॅ, राहुल गंध अपार ।
जाड़ा के स्वागत लली, बिछलोॅ हरसिंगार ।2।

धीरेॅ-धीरेॅ ठंड के, बढलै राहुल पाँव ।
होथैं देखो साँझ हो, अलसैलो छै गाँव ।3।

स्वीटर, कम्बल, बोरसी, ऐलै सबकेॅ याद ।
पछुआ ठाड़ो द्वार पर, बनलोॅ छै सैयाद ।4।

ओस घास के नोक पर, मोती भोरे-भोर ।
धुकधुकिया बस रौद छै, कोहोॅ चारो ओर ।5।

शीतलहर के दिन यहाँ, बर्फानी छै रात ।
दीन-हीन के भाग मेॅ, राहुल बड़ी कभात ।6।

जुडलोॅ दाढ़ी-ठेहुना, काँपै थर-थर हाथ ।
ठोर-दाँत के गीत नेॅ, खोजै दीनानाथ ।7।

नैकी दुल्हिन छै बनल, ई ठंडा के धूप ।
कोहोॅ एकरोॅ घूँघटा, जगमग एकरोॅ रूप ।8।

तिल-चूडा के लाय के, आबै राहुल याद ।
तिलवा-तिलकुट के कहाँ, बिसरै्तै हौ स्वाद ।9।

कहाँ कतरनी के भला, मन सेॅ जैतै गंध ?
राहुल लेॅ संकरात के, शिशिरो मेॅ आनंद ।10।


रचनाकाल- 14 जनवरी 2013