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शरद ऐलै सखी / ऋतुरंग / अमरेन्द्र
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शरद ऐलै सखी।
सुतलोॅ छै धानोॅ केॅ तकिया बनाय
रौद छाती रखी।
सोना रङ देहोॅ पर सोन्है के चुनरी
नीलम के पलंगोॅ पर पिन्ही केॅ मुनरी
ओघरैली पटरानी सोनामुखीं
शरद ऐलै सखी।
करवट जों बदलै तेॅ शीशोॅ हिलै छै
मूँ ठो पदमनिये रङ छिनमान मिलै छै
रही-रही नीनोॅ में जाय छै टघो
शरद ऐलै सखी।
छाती सें जखनी पीताम्बरी टघरै
काँचोॅ के धरती पर पानी रङ पसरै
बेसुध छै मालती के सब रस चखी
शरद ऐलै सखी।
-14.10.95