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शरद ठोर मुस्कान छैै / कुमार संभव
Kavita Kosh से
सहज शृंगार शरद धरती के
भरलोॅ खेत खलिहान छै,
चरचा चर में चास-चास में
रंग विरंग के धान छै।
कहीं पर काटै धान कटनियाँ
आरी पर घूमै किसान छै,
हर हरवाहा बोझो ढुअै
गाबै सुन्दर तान छै।
कोय खेत में चना खेसाड़ी
अरहर के अलगे शान छै,
धान कतरनी ग़म गम गमकै
रैंचा फूलें तानै काम कमान छै।
बारी में फूलगोभी, बैगन
शरद ठोर मुस्कान छै,
राती चलतै साग टमाटर
सजलोॅ सभ्भे साज समान छै।
रुनझुन बोलै चिकना के पायल
शरद रूप हलकान छै,
शरद सुन्दरी सीतोॅ सें भींजली
खोजी थकलै पिया मचान छै।