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शरद तेॅ ऐलै गंगा नहाय / अनिल कुमार झा

पाप सभे टा धोनेॅ बहाय,
शरद तेॅ ऐलै गंगा नहाय।
नित नित गिनी-गिनी डुबकी देने
ठंडा भरी-भरी मटकी लेने,
फूल फुलैने, सबकेॅ रिझैने
भाग भोग सबटा लेलकै मनाय,
शरद तेॅ ऐलै गंगा नहाय।
साँझ भोर केॅ करै छै पूजा
काम कहाँ छै आरो दूजा,
रोपी डोभी सबके सब करैने
ऐलै आपनोॅ काम पुराय,
शरद जे ऐलै गंगा नहाय।
हरा हरा छै गालोॅ गोरोॅ
रात अन्हरियोॅ छै चमकोरोॅ,
कामोॅ के चिन्ता में चिंतित
आलस मीन से खटिया बिछाय,
शरद जे ऐलै गंगा नहाय।