भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरद पूर्णिमा / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
					
										
					
					तुमने मुझे अच्छा नही कहा
और मैं अच्छा न हुआ
तुमने मुझे बुरा न कहा
इसलिए बुरा न हुआ 
तुमने मुझे जो भी  कहा 
वह मैं हुआ
 
तुमने मुझे पागल कहा 
वह मैं हो गया 
तुमने मुझे आवारा कहा 
और मैं भटकने  लगा 
जब मैंने तुम्हें चाँद कहा 
तो ख़ुद चकोर हो गया 
हमारे तुम्हारे बीच 
चाँद और चकोर के बीच की 
दूरी है 
पूर्णिमा के दिन यह दूरी  
कम होने  लगती है 
अमृत की वर्षा होने लगती है
 
तुम पूर्ण हो जाती हो 
और मैं पूर्णतः कवि हो 
जाता हूँ
	
	