भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरद विलायती / अज्ञेय
Kavita Kosh से
आया है शरद विलायती क्या बना है!
रंगीन फतुही काली जुर्राबें,
हवा में खुनकी मिज़ाज में तुनकी
दिल में चाहे जाती धूप की कसक
पर चाल में विजेता की ठसक
हम जान गये
यह सब सुनहली शराबें
पीने का बहाना है!
फिर भी मियाँ शरद,
हम तुम्हें मान गये!
मई, 1976