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शरद सुहानी / मधुसूदन साहा

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शरद सुहानी
मौसम-रानी
आयी पहने साड़ी धानी।

हरे-हरे खेतों में हरदम
नाचा करती है यह छमछम
फसलें झूमे
भौरे चूमे
शीशों के मुखड़े लासानी।

धूप सुनहली सुबह-सबेरे
पौध-पौध पर किरण बिखेरे
हवा सहेली
थाम हथेली
मेड़ों पर करती अगवानी।

कमाल खिले हैं पोखर-पोखर
श्वेत रंग के सुंदर-सुंदर
सबको भाते
नैन जुड़ाते
पंखुरियाँ जानी-पहचानी।