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शरद / कमला प्रसाद मिश्र 'विप्र'
Kavita Kosh से
बितल बरसतिया सरद सुभ आइल।
डमकि-डमकि रोइ बदरा चुपाइल
कदम का डाढ़ि फुलगेनवा गंथाइल
पाकल केस, कास-कुसवा बुढ़ाइल।
बितल बरसतिया सरद सुभ आइल।।
उपरा अगस्त उगल जल फरिआइल
हेठवाँ के घाम देखि पाँक सकुचाइल
उतरि गइल खंड़लीच झिंगुर चुपाइल।
बितल बरसतिया सरद सुभ आइल।।
राह आ घाट छेंकल छोड़लस पानी,
पवंढ़लि पुरइन आ चढ़लि जवानी
ताकेला तरेगन नीचे कमल फुलाइल।
बितल बरसतिया सरद सुभ आइल।।
धानवा का सोभे लागल धानी रंग धोती
घसिया का पतइन झुले लागलि मोती
सरग सिहर उठल चाँद चिहाइल।
बितल बरसतिया सरद सुभ आइल।।