शराबी की सूक्तियाँ-81-90 / कृष्ण कल्पित
इक्यासी
'घुटुकन चलत
रेणु तनु मण्डित'
रेत पर लोट रहा है रेगिस्तान का शराबी
'रेत है रेत बिखर जाएगी'
किधर जाएगी
रात की यह आख़िरी बस?
बयासी
भंग की बूटी
गाँजे की कली
खप्पर की शराब
कासी तीन लोक से न्यारी
और शराबी
तीन लोक का वासी!
तिरासी
लैम्प पोस्ट से झरती है रोशनी
हारमोनियम से धूल
और शराबी से झरता है
अवसाद।
चौरासी
टेलीविजन के परदे पर
बाहुबलियों की ख़बरें सुनाती हैं
बाहुबलाएँ !
टकटकी लगाए देखता है शराबी
विडम्बना का यह विलक्षण रूपक
भन्ते! एक प्याला और।
पिचासी
गंगा के किनारे
उल्टी पड़ी नाव पर लेटा शराबी
कौतुक से देखता है
महात्मा गांधी सेतु को
ऐसे भी लोग हैं दुनिया में
'जो नदी को स्पर्श किए बगैर
करते हैं नदियों को पार'
और उछाल कर सिक्का
नदियों को ख़रीदने की कोशिश करते हैं!
छियासी
तानाशाह डरता है
शराबियों से
तानाशाह डरता है
कवियों से
वह डरता है बच्चों से नदियों से
एक तिनका भी डराता है उसे
प्यालों की खनखनाहट भर से
काँप जाता है तानाशाह।
सतासी
क्या मैं ईश्वर से
बात कर सकता हूं
शराबी मिलाता है नम्बर
अन्धेरे में टिमटिमाती है रोशनी
अभी आप कतार में हैं
कृपया थोड़ी देर बाद डायल करें।
अठासी
'एहि ठैयां मोतिया
हिरायल हो रामा...'
इसी जगह टपका था लहू
इसी जगह बरसेगी शराब
इसी जगह
सृष्टि का सर्वाधिक उत्तेजक ठुमका
सर्वाधिक मार्मिक कजरी
इसी जगह इसी जगह
नवासी
'अन्तरराष्ट्रीय सिर्फ़
हवाई जहाज़ होते हैं
कलाकार की जड़ें होती हैं'
और उन जड़ों को
सींचना पड़ता है शराब से!
नब्बे
जिस पेड़ के नीचे बैठ कर
ऋत्विक घटक
कुरते की जेब से निकालते हैं अद्-धा
वहीं बन जाता है अड्डा
वहीं हो जाता है
बोधिवृक्ष!