शराबी की सूक्तियाँ-91-98 / कृष्ण कल्पित
इकयानवे
सबसे बड़ा अफ़सानानिगार
सबसे बड़ा शाइर
सबसे बड़ा चित्रकार
और सबसे बड़ा सिनेमाकार
अभी भी जुटते हैं
कभी कभी
किसी उड़े हुए शराबघर में!
बानवे
हमें भी लटका दिया जाएगा
किसी रोज़ फाँसी के तख़्ते पर
धकेल दिया जाएगा
सलाखों के पीछे
हमारी भी फ़ाकामस्ती
रंग लाएगी एक दिन!
तिरानवे
(मण्टो की स्मृति में)
क़ब्रगाह में सोया है शराबी
सोचता हुआ
वह बड़ा शराबी है
या ख़ुदा!
चौरानवे
ऐसी ही होती है मृत्यु
जैसे उतरता है नशा
ऐसा ही होता है जीवन
जैसे चढ़ती है शराब।
पिचानवे
'हाँ, मैंने दिया है दिल
इस सारे क़िस्से में
ये चाँद भी है शामिल।'
आँखों में रहे सपना
मैं रात को आऊँगा
दरवाज़ा खुला रखना।
चाँदनी में चिनाब
होठों पर माहिए
हाथों में शराब
और क्या चाहिए!
छियानवे
रिक्शों पर प्यार था
गाड़ियों में व्यभिचार
जितनी बड़ी गाड़ी थी
उतना बड़ा था व्यभिचार
रात में घर लौटता शराबी
खण्डित करता है एक विखण्डित वाक्य
वलय में खोजता हुआ लय।
सतानवे
घर टूट गया
रीत गया प्याला
धूसर गंगा के किनारे
प्रस्फुटित हुआ अग्नि का पुष्प
साँझ के अवसान में हुआ
देह का अवसान
धरती से कम हो गया एक शराबी!
अठानवे
निपट भोर में
'किसी सूतक का वस्त्र पहने'
वह युवा शराबी
कल के दाह-संस्कार की
राख कुरेद रहा है
क्या मिलेगा उसे
टूटा हुआ प्याला फेंका हुआ सिक्का
या पहले तोड़ की अजस्र धार!
आख़िर जुस्तजू क्या है?