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शरारती नज़्म / आनंद खत्री
Kavita Kosh से
वो कहती ही नहीं थी
जो मैं उससे कई बार
सुनना चाहता था
उसकी पहचान
दर्ज़ कराना चाहता था।
लम्बी मुस्कराहटें
खर्च हुई हर बार
- कुछ ज़ाहिर ना हुआ
पर ये जज़्बात उसको
बेचैन ज़रूर करते रहे
अधलिखा सा आज मैंने उसको
फिर फिर गुनगुनाया
खोखला- अधूरा कर गयी थी वो।
इसलिए आज उस नज़्म से
मैंने दोस्ती तोड़ दी।