शरीफ़ लोग, इतने शरीफ़ होते हैं
कि कभी किसी स्त्री की मदद नहीं करते।
जब कभी उनकी शराफ़त पर भरोसा कर,
उनकी तरफ देखती हैं,
वे दूसरी तरफ देखने लगते हैं
और सावधानी से पीछे हट जाते हैं।
उनके पीछे से झाँकने लगते हैं,
फिर वही बदनाम लोग,
वक़्त ज़रूरत पर वे ही बदनाम व्यक्ति
कर देते हैं उस स्त्री के काम।
शरीफ़ लोग कहते हैं,
यह तो था ही इसी चक्कर में।
शरीफ़ लोग कभी नहीं पड़ते मदद जैसे चक्करों में,
मरती है, मर जाये स्त्री,
वे नहीं पडेगें इस तमाशे में।
इतनी मदद ज़रूर करते हैं कि देखते रहे बदनाम
लोगो के आने, जाने, रुकने का समय
बदनाम लोगों के फिसल जाने में ही उत्थान
होता है उनका।
वैसे बडी चिंता होती है उन्हें अपनी इज़्ज़त और
अपने परिवार की।
बदनाम लोंगो से मदद लेती स्त्री बड़ी सतर्क होती है
सोचती हैं, कृतज्ञ हो,
पिला दे एक कप चाय या एक गिलास पानी ही
पर डर कर शरीफ़ लोगोँ से लौटा देती हैं,
दरवाजे से ही।
मदद लेकर दरवाजे से लौटती स्त्री की
शक़्ल कितनी मिलती है,
शरीफ़ लोगों से।