इस शर्मनाक समय में
कविताएँ भी थीं लहूलुहान
और भेज रही थीं कवियों पर
बेशुमार लानतें…
वो इतनी विचलित थीं
कि मिटा देना चाहती थीं
अपने लिखने वालों के ही नाम…
इस शर्मनाक समय में
कविताएँ भी थीं लहूलुहान
और भेज रही थीं कवियों पर
बेशुमार लानतें…
वो इतनी विचलित थीं
कि मिटा देना चाहती थीं
अपने लिखने वालों के ही नाम…