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शर्मीली / मेघा छाए आधी रात
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रचनाकार: ?? |
मेघा छाए आधी रात,बैरन बन गई निंदिया
बता दे मैं क्या करूँ
सब के आंगन दिया जले रे, मोरे आंगन जिया
हवा लागे शूल जैसी, ताना मारे चुनरिया
कैसे कहूँ मैं मन की बात
रूठ गये रे सपने सारे, टूट गयी रे आशा
नैन बहे रे गंगा मोरे, फिर भी मन है प्यासा
आई है आँसू की बारात