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शर्म / श्यामसुंदर भारती
Kavita Kosh से
उस दिन
तोलते वक्त
जब दुकानदार ने
मेरी नजरें बचा कर
तराजू के डंडी मारी ।
मेरे मित्र !
जब-
मेरे मुंह पर नहीं
मेरे पीछे
मेरी बुराई बखानी ।
और उस दिन
रिशवत लेने की खातिर
जब उस ने
हाथ लम्बा किया
टेबल के नीचे से
उस वक्त
लगा मुझे कि
लोगों की आंखों में
अभी शर्म बाकी है ।
अनुवाद : नीरज दइया