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शर्याति राजा छत्रधारी, कुटम्ब कबिला सेना सारी / राजेराम भारद्वाज

                     (15)

सांग:– चमन ऋषि – सुकन्या (अनुक्रमांक– 3)

वार्ता:- सज्जनों! अवधपुरी के सूर्यवंशी राजा शर्याति कै पुत्र नहीं था। ब्राहम्णों ने राजा को पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी। राजा, रानियों व सेना सहित वन में जाते है। फिर कवि वहा का वर्णन कैसे करता है।

शर्याति राजा छत्रधारी, कुटम्ब कबिला सेना सारी,
यज्ञ-हवन की करके त्यारी, चाले बियावान मै ।। टेक ।।

भूप थे चौदा विद्या ज्ञानी, उसकी अवधपुरी रजधानी,
रानी चार हजार बताई, होया फेर भी पुत्र नाहीं,
महारानी कै सुकन्या जाई, वा थी उम्र नादान मै ।।

पहुंचगे नदी नर्मदा के तीर, छोड़के अपणी जन्म जांगीर,
उडै़ परम फकीर तपै संन्यासी, पण्डित लोग पढ़े हुए काशी,
भूप मंत्री रानी दासी, बैठे हर के ध्यान मै।।

उड़ै था च्यवन ऋषि का डेरा, सज्जनों किसे-किसे नै बेरा,
चेहरा ऋषि का ना देख्या भाला, ढीमक चढ़री मोटा चाला,
आंख चमकती जुगनूं की ढाला, जणुं दो तारे आसमान में।।

सुकन्या सब सखियां तै मिली, ऋषि के डेरे में आई चली,
कली राजेराम नै चार जोड़दी, सुकन्या नै कलम तोड़दी,
च्यवन ऋषि की आंख फोड़दी, थी अनजान में।।