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शर हैं हम विपरीत दिशा के / कुमार शिव
Kavita Kosh से
शर हैं हम विपरीत दिशा के
मिले गगन में इक पल ।
वहाँ शून्य में किसी जगह
अपने-अपने रस्ते पर
अपने सुख-दुख, संग-साथ
अपनी स्मृतियाँ लेकर
गुज़रे हैं हम बहुत पास से
लेकर मन में हलचल ।
मिलन हमारा निश्चित था
कड़की थी चाहे बिजली
चाहे चली तेज़ थी आन्धी
गरजी चाहे बदली
वर्तमान जी लेंगे हम फिर
हो जाएँगे ओझल ।
बहुत निकट थे इक-दूजे के
गर्म-गर्म उच्छवास
पलकों पर थे कभी सितारे
कभी लबों की प्यास
हमें ज्ञात है सफ़र हमारा
होगा यहाँ मुकम्मल ।