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शव-पूजकों के लिए / बसन्तजीत सिंह हरचंद
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गद्दी पर बैठा है तू जो
मरे हुओं के फूल चिताओं से चुन - चुनकर
सहज सहेजो अस्ति - कलश - दल में फिर पूजो ।
करो अर्चना आज निराला के चित्रों की
मुक्तिबोध अथवा प्रसाद या मृत मित्रों की ।
रचनाएँ जो रच आईं थीं
कुर्सी से पद- ठोकर देकर ठुकराईं थीं ।
छापो तुम दुत्कारी सारी वे कविताएँ
छापो अब मृतकों के शव की खिन्न कथाएँ
करुण व्यथाएं ।
जिसके लिए अतृप्त मर गया रसना - हंसा
समालोचना - लेखों में दो वही प्रशंसा ।
कई संस्मरणों का अंक विशेष निकालो
श्राद्ध बड़ी श्रद्धा दिखला कर अब कर डालो ।
घड़ियाली आंसू की बूँदें उष्ण बहाओ,
लौटाई रचनाएं गला फाड़ कर गाओ
नाम भुनाओ ।
मृतकों की तुम करो अर्चना ,
वरो अर्जना ।।
(श्वेत निशा , १९९१)