शशि-उर्वशी / राजकमल चौधरी
हँसिये हँसीमे फँसलि
कामिनि-दामिनि
नयनहिमे नहु-नहु मुस्कायलि
चपल-चरण नाचि-नाचि
बिहुँसि उठलि कनक-कदलि
धुक चुकमे रौद भले
आबि गेल छपल, तपल, विमल, नवल बदरी
सुमुखि, सुन्नरि रम्भा-सन
दीप्त कंचनजंघा-सन
फुजलि-खिललि कदली-
तमक हिरदय फाटल
प्रणय-विनय चमकल
नयन-नयन दमकल
हँसैत नचैत घटा-घटा
कामिनि, दामिनि अँटा-अँटा
अँटा-अँटा आँखि
आँखि थाकि गेलि अंजन
काम-कुसुम यौवन-वन
दलकि-दलकि दौगल हरिन-हरण हृदय-बाण
पुष्प-तीर छोड़ल
आँचरकेँ लहरा क’
विद्युल्लता छहरा क’
कंचुकिसँ बहरा क’
हँसी-हँसी हंस उड़ल
ताकि ताकि हरसि उठल मुग्धाक लोचन
एम्हर-ओम्हर नुक्का-चोरि
प्रमद भावसँ विभोरि
चानक नखत नाह बोरि, नील धवल सिन्धुमे
ओस-आस भीजि भेल
चम्पाक दल पर हिमकण प्रसन्न भेल
फुजल-खुजल यामाक साड़ी...
चातकि,
कहब-सुनब माफ, साफ-साफ सूनि लीअ
कि
छोड़ू भजन, तोडू़ विनय
मोड़ि हृदय, बिसरि विषय
निरदय स्वातीक बुन्न
यमुनामे डूबि गेल...
परातीक लय सन प्रवाहित
लाज लहरि रक्तिम
भ्रू भंगिमा बंकिम
अंकिम सुकुमारिता...
बाँहि पर राखि गाल
हँटा क’ पलकसँ अलग-जाल
हाल-चाल छलथि ओ पुछने-
तोड़िक लोक-शोक
अभिघाक, प्रज्ञाक बन्धन
‘संचयिता’क कविता सन
सविताक सरिता सन
निर्झरिता सन
हँसीये-हँसीमे फँसलि
बिजुरी-सन हृदय घंसलि
कामिनि-दामिनि
अन्तर सुहासिनि
सुमधुरा अप्सरा
उर्वशी-शशी
-वैदेही: जुलाइ, 1955