भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहरक जिनगी नामक छै / नवल श्री 'पंकज'
Kavita Kosh से
शहरक जिनगी नामक छै
रीत अजब एहि ठामक छै
प्रीत निमाहब कठिन कते
सभ भूखल बस कामक छै
नेह बिसरलै भाव बिलेलै
बनल पुजगरी चामक छै
गंगाजल सन मदिरा लागै
मोल नञि शोणित घामक छै
चारक शोभा सुन्दरता बड़
घर-घर दुर्गति खामक छै
उस्सर परती सोन पड़ल
होइत ओगरिया तामक छै
"नवल" नगर गेलै से गेलै
बिसरल ममता गामक छै