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शहरे दिल का हर इक अब मकाँ बन्द है / उषा यादव उषा
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शहरे-दिल का हरिक अब मकाँ बन्द है
सुख परिन्दा भी आख़िर कहाँ बन्द है
गूँगे आतुर हुए बोलने के लिए
पर ज़बाँ वालों की तो ज़बाँ बन्द है
एक आँधी उठे हुक़्मराँ के ख़िलाफ़
दिल मे कब से घुटन ये धुआँ बन्द है
मसअला तो अना का है इतना बढ़ा
गुुुफ़्तगू दोनों के दरमियाँ बन्द है
वो हैं आज़ादी के आज रहबर बने
जिनकी मुठठी में तो कहकशाँ बन्द है
अय उषा हम करें ग़म बयाँ किस तरह
ख़ामुशी शोर के दरमियाँ बन्द है