भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहरों के बीच दूरियाँ / रूचि भल्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इलाहाबाद से दूर है दिल्ली
फलटन से बहुत दूर
दिल्ली से भी दूर है दिल्ली
दिल्ली में अब कहाँ रहती है दिल्ली
जैसे मैं नहीं रहती हूँ अब इलाहाबाद में
इलाहाबाद की याद को साथ लिये घूमती हूँ
दिल्ली भी दिल्ली की यादों को लिए घूमती है
तंग गलियों से निकल कर
स्ट्रीट रोड पर आ गई है दिल्ली
क्या तुमने कभी देखा है
आकर इंडिया गेट को ,प्रज्ञा !
अगर तस्वीरों में ही देखा है तो ठीक है
रूबरु देखोगी हकीकत से अलहदा पाओगी
लहराते तिरंगे के नीचे देसी नहीं
विदेशी सभ्यता टहलती है
पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली
नई दिल्ली से निकलती चली जा रही है दिल्ली
दिल्ली 6 में तुम्हें मिलेंगे गिने-चुने कबूतर
परांठे वाली गली भी मिल जाएगी
पर परांठे नहीं मिलेंगे
चाँदनी चौक में जैसे अब चाँदनी नहीं मिलती
रोटियों की शक्ल में
सब्जियों से स्टफ़्ड कुछ मिलता तो है
कड़ाही के खौलते तेल में तल जाता है
छन कर सज जाता है
तश्तरी में सब्जी रायते अचार के संग
ढाई सौ रूपए की प्लेट में जो मिलता है
तवे पर सिंकता वह खस्ता परांठा नहीं है
कहने को मैं उसे कचौड़ी भी कह सकती हूँ
अगर नेतराम और सुलाकी
मुझे माफ़ कर सकें
तुम भी मुझे माफ़ कर देना ,दोस्त
जिस दिल्ली को तुम
हिन्दुस्तान का दिल समझती हो
मेरे पास दिल्ली का वह नक्शा नहीं
दिल्ली से बेहतर
तुम कुल्लू का पहाड़ घूम लो
सातारा का पठार
गोवा का समुद्र
कलकत्ते की हुगली
जैसलमेर की रेत देख लो
इलाहाबाद में भी तुम्हें बसंत मिल जाएगा
फरवरी के महीने में
पर दिल्ली में दिल्ली से मिलने की
कोई गारंटी नहीं