भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहरों से गाँव गए / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
शहरों से गाँव गए
गाँव से शहर आए
काग़ज़ के गुलदस्ते
चिड़ियों के पर लाए
ख़ुशबू तो है नहीं
उड़ान भी नहीं
रंगों की धरती
आकाश है कहीं
छाँह में चमकते हैं
धूप लगे कुम्हलाए
बढ़ करके दूर गए
गए बहुत ऊँचे
रिश्तों की धार
बून्द -बून्द तक उलीचे
जीने की प्यास बेंच
मरने के डर लाए
एक लहर उठी
और एक नाव डूबी
आँख बचा गैरत
ऊँची छत से कूदी
मेले में जुड़े जो
अकेले वापस आए