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शहरोॅ रोॅ जिनगी / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’
Kavita Kosh से
फैरछोॅ विहानी में, पारक मैदानी में, दरबर लगावै छै लोग
सड़कोॅ सुनसानी लग, नद्दी बगानी लग भोगै छै शहरोॅ के भोग
उछलै छै, कूदै छै, मनमां बहलाबै छै, करै छै कत्तेॅ नीं योग
मोटरोॅ के धुइयाँ सें, मिलबा के ठइयाँ सें फैलै छै बड़ोॅ बड़ोॅ रोग
असकल्लोॅ जिनगी छै, बेगानोॅ लोगबा छै, नैं छै केखरौ से सरोकार
सभ्भै के आपनां छै, पेटबा ठो नांपनां छै, कत्तेॅ छै जिनगी लाचार
जाड़ा या गरमी में बरखा के पानी में, तितलोॅ ठिठुरलोॅ परान
अटिया के लारोॅ रङ पिपरी के धारोॅ रङ दावोॅ पेॅ लागलोॅ छै जान।